वेद प्रकाश शर्मा
- नितिश
- Jan 16, 2022
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वेद प्रकाश शर्मा ने जासूसी लेखन में जिन बुलंदियों को छुआ वह बहुत कम लोगों को ही प्राप्त होती है | अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि १९९३ में उनके उपन्यास ‘वर्दी वाला गुंडा’ के प्रथम संस्करण की १५ लाख प्रतियाँ छपी | जब तक उन्होंने लिखा उनके पॉपुलैरिटी में कोई कमी नहीं आयी | एक समय ऐसा आया कि उनके प्रतिद्वंदी के रूप में केवल सुरेन्द्र मोहन पाठक ही खड़े रहे | शुरूआती दिनों में उन्हें भी घोस्ट राइटिंग का सामना करना पड़ा | १९७२ में उनका पहला उपन्यास ‘सीक्रेट फाइल’ वेद प्रकाश कम्बोज के नाम से छपा | उनके अनुसार उन्होंने २३ उपन्यास वेद प्रकाश कम्बोज के नाम से लिखे और दहकते शहर (१९७३) वह पहला उपन्यास था जो उनके अपने नाम से छपा | उनका दावा था कि कम्बोज के नाम से उन्होंने जो भी उपन्यास लिखे वे असली कम्बोज के उपन्यासों से ज्यादा मकबूल हुए | अब ये दावा कितना सही था ये कहना मुश्किल है क्योंकि पब्लिशिंग हाउस अपने सेल्स के सही आंकड़े नहीं रखा करते थे | आज भी नहीं रखते हैं | पर आगे के दशकों में उनके उपन्यास युवा दिलों पर राज करते रहे और आज भी उनकी चाहने वालों की कमी नहीं | ८० के दशक में ओम प्रकाश शर्मा और वेद प्रकाश शर्मा का लेखन कम होता चला गया और वेद प्रकाश शर्मा सबसे आगे की पंक्ति के लेखक बने | उनके शुरूआती किताब विजय-विकास सीरिज के होते थे पर आगे चलकर उन्होंने ज्वलंत सामाजिक समस्याओं पर कई प्रसिद्द उपन्यास लिखे |
वे इब्ने सफ़ी और वेद प्रकाश कम्बोज की परंपरा के लेखक थे | उन्होंने शुरूआती उपन्यासों में कम्बोज जी के मुख्य पात्रों विजय, अल्फांसे, रघुनाथ, सिंगही, रैना, माइक, हैरी , धनुषटंकार, गुलफाम,जैकी आदि को अपनाया और कथानक एवं हास्य विनोद भी कम्बोज के अनुरूप ही रखा | पर धीरे-धीरे अपने अद्भुत भाषा शिल्प से गति पकड़ी और अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने की कोशिश रंग लाने लगी | | पर जब उन्होंने रैना और रघुनाथ और पुत्र के रूप में अपने नए पात्र विकास का सृजन किया तो उनके चाहने वाले युवा वर्ग ने उन्हें हाथों-हाथ लिया | हैरी जो पहले से कम्बोज का एक युवा पात्र था को विकास के अल्टर ईगो के रूप में लाया गया |
हैरी और विकास के संघर्ष ने कई कथानकों को जन्म दिया और इस प्रकार उपन्यास दर उपन्यास वो आगे बढ़ते रहे | उनके इसी नए नायक ने उनके लिए पाठकों का नया वर्ग तैयार कर दिया | विकास को अल्फांसे और सिंगही के शिष्य के रूप में चित्रित किया गया जो हिंसा की पराकाष्ठा का प्रतिरूप था | आगे हिंसा ने क्रूरता का रूप ले लिया | इस रूप में चित्रित वह क्राइम फिक्शन का पहला नायक था | वह दुश्मन को क्रूर से क्रूर सजा दे सकता था | उसे चीर फाड़ कर सुखा सकता था | वह कभी भी अमेरिका या पाकिस्तान जाकर दहशत कायम कर सकता था | दुश्मन उसके नाम से ही बेहोश हो जाते थे ! इनके मध्य कुछ और भी दुश्मन शर्मा जी के लेखनी से उभर कर सामने आये, जैसे पाकिस्तान के नुसरत और तुगलक | एक उपन्यास में तो ये नायक बनकर सामने आये |
इनके मध्य एक और चरित्र सामने आया | उसे हिंसा से सख्त नफरत थी | यानी विकास के ठीक उलट | वह था वतन | वह भी कई उपन्यासों का नायक बना | पर इन सभी चरित्रों के ऊपर रहा विजय का चरित्र | उसका चरित्र हनन नहीं होने दिया गया | दहकते शहर से जो यात्रा शुरू हुई थी वह अंत तक चलती रही | बाद में अपने चरित्रों को उसने अपने पुत्र शगुन शर्मा को उधार दे दिया |
इनके मध्य एक और चरित्र सामने आया विभा जिंदल का | जो कभी एक और चरित्र की मित्र हुआ करती थी | वह था खुद लेखक वेद प्रकाश शर्मा का चरित्र | बीवी का नशा शर्मा जी का ऐसा दांव था जो हिट साबित हुआ | विभा जिंदल को लेकर और भी उपन्यास लिखे गए |
केशव पंडित सबसे बड़ी ट्रेडमार्क बनी | पहले उसे लेकर शर्माजी ने एक उपन्यास लिखा था | पर आगे जाकर और भी कई उपन्यास लिखे | कानून का बेटा अपने समय का सबसे बड़ा हिट साबित हुआ | आगे जाकर यह किरदार भी विजय और विकास सीरिज से जुड़ गया | अन्य लेखकों ने भी इस किरदार को हाथों हाथ लिया | आज भी इसके नाम से किताबें मार्केट में दिखाए देती है |
१९८५ में इन्होने ऋतुराज के साथ मिलकर अपना प्रकाशन संस्थान तुलसी पॉकेट बुक्स खोला | यहाँ से उनके करीब ७० उपन्यास प्रकाशित हुए |
इसी बीच उनके थ्रिलर और सामजिक किताबों का दौड़ चल ही पड़ा था | सुमन और राखी और सिन्दूर से शुरू कर वर्दी वाला गुंडा तक का सफ़र परिपक्व हो चला था | सुपर स्टार और दायाँ तक आकर पुरे तौर से थ्रिलर का दौर आ चूका था | कुछ किताबें उनके आसान के बाद उनके नाम से प्रकाशित हुई पर पाठक समझ सकते थे की वह उनकी लिखी हुई नहीं हो सकती थी | पर यह पॉकेट बुक्स व्यवसाय के अवसान का दौर था |
उनकी सफलता का असर बॉलीवुड तक भी पहुंचा | उनके किताबों पर तीन फिल्में भी बनी जिसमे सबसे बड़ा खिलाड़ी सुपरहिट रहा |
उनका ज़िक्र देव्कंता संतति के उल्लेख के बिना समाप्त नहीं हो सकता | १४ भाग में उन्होंने चंद्रकांता संतति के तर्ज पर देवकान्ता संतति लिखी जिसमे उन्होंने सभी मुख्य पात्रों को पिछले जन्म में ले गए | यह एक कठिन प्रयास रहा होगा |
६१ वर्ष की छोटी आयु में उन्होंने अंतिम साँसे ली | उनके चाहने वालों और रहस्य कथा प्रेमियों के लिए यह बहुत बड़ा झटका था |
मनोरंजक जानकारी , बधाई ।
VPS ke upanyas ki list dijie Jo bed Prakash kamboj ke naam SE chhape
वाह , बहुत सुंदर जानकारी , वेदजी की याद ताजा हो गई।
अदभुत संग्रह बन रहा है यह।