KAMBOJ JEE KA SAFAR
- नितिश
- Jan 19, 2022
- 7 min read
Updated: Jan 21, 2022

‘कौन वेद प्रकाश कम्बोज ?
जब मशहूर लेखक कम्बोज जी के बारे में लिखने के लिए कलम उठता हूँ तो सबसे पहले यही सवाल मस्तिष्क में कौंधता है | जैसे आप गूगल में कुछ सर्च करने के लिए टाइप करें तो सैंकड़ो आप्शन उभर आते हैं | यहाँ सैकड़ों तो नहीं पर कुछ आप्शन अवश्य उभर आते हैं |
पहला वेद प्रकाश शर्मा का वह स्टेटमेंट उभर कर सामने आता है जिसमें वह कहते हुए नज़र आते हैं “कम्बोज को पढ़कर मुझे बार-बार ऐसा लगता था कि मैंने इनसे बेहतर लिख सकता हूँ |” या फिर “मैंने वेद प्रकाश कम्बोज के नाम से (घोस्ट राइटिंग } २३ नावेल लिखे | मेरे नावेल को ओरिजिनल से ज्यादा पसंद किया गया |”
दूसरा, वरिष्ठ लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक का लंगोटिया यार वेद प्रकाश कम्बोज | अपनी आत्मकथा में उन्होंने कम्बोज जी को शिद्दत से बार-बार याद किया है | बड़े प्यार से वह बताते हैं कि किस प्रकार कम्बोज जी उनके(पाठक साहब के) प्रथम उपन्यास के प्रकाशन के समय ‘चिढ’ गए थे | उपन्यास में कम्बोज जी ने दो पेज की इंट्रोडक्शन भी लिखी थी जो पाठक साहब के अनुसार उन्होंने ओमप्रकाश शर्मा के दबाव में लिखी थी | आगे पाठक साहब कम्बोज जी के ईगो और ढीठ होने का जिक्र करते हैं कि किस प्रकार वह अपने फीस कम करने को तैयार नहीं थे भले ही कोई उनके उपन्यास खरीदने को तैयार नहीं हो | और भी कई प्रसंग है उनकी आत्मकथा में अगर शराब, अंडे की भुर्जी और मुर्गे की टांग का ज़िक्र छोड़ भी दे तो | खैर यह तो दोस्ती यारी की बातें हैं | हम कौन होते हैं कुछ कहने वाले |
तीसरा, अपने मित्रों से उनका फर्स्ट हैण्ड ज़िक्र सुनता रहता हूँ | कहते हैं कि इस उम्र में भी उतने ही खुशदिल इंसान हैं | सभी से खुलकर मिलते हैं | ८२ वर्ष की उम्र में भी अपने जिंदादिली को बचाकर रखा है | नीलम जासूस कार्यालय (जहाँ से उनका उपन्यास लंगड़ी लड़की १९५९ में प्रकाशित हुआ ) के संस्थापक सत्यपाल जी के पुत्र सुबोध जी से भी उनके विषय में कई बार बातचीत हुई और उनके व्यक्तित्व के कई पहलुओं की जानकारी मिली | एक दिन उनके पुत्र मेशु कम्बोज से भी लम्बी बातचीत का अवसर मिला | फिर वह मौका आया जब स्वयं वेद प्रकाश कम्बोज से बातचीत हुई | अवसर था मेरे प्रथम उपन्यास ‘राक्षस’( जिसमें अलफांसे भी एक महत्वपूर्ण पात्र है ) के विमोचन का दिन जो कम्बोज जी के हाथों हुआ | नए लेखक उनके चरित्रों पर काम कर रहे हैं इसके लिए वह अत्यंत ही उत्साहित थे | जो विरासत उन्होंने छोड़ी है या यूँ कहे जिन विरासतों का वह अभी तक निर्माण कर रहे हैं उसका ज़िक्र आने वाले सालों तक होता रहेगा |

युवा लेखक राम पुजारी कम्बोज जी जीवनी पर काम कर रहे हैं | यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी | हो सकता है तभी उन आरोपों और प्रत्यारोपों को विराम मिले जो जवाब नहीं देने के कारण उत्पन्न होते हैं | अपना पक्ष सभी को रखने का अधिकार है |
‘कुछ नहीं कहने से भी छीन जाता है एजाजे सुखन’
कम्बोज जी को अमर उपन्यासकार ओम प्रकाश जी का सानिध्य मिला | काफी वर्ष उनके सानिध्य में उन्होंने बिताया | उनके सानिध्य और उनके मित्र मंडली का भी साथ मिला होगा | ओम प्रकाश जी मित्र मंडली में हिंदी के कई वरिष्ठ साहित्यकार भी थे | जवाहर चौधरी का भी उनका प्रभाव रहा | ओम प्रकाश शर्मा और वेद प्रकाश कम्बोज ने काफी समय एक साथ बिताया | सुरेन्द्र मोहन पाठक का भी उनका साथ रहा | पर तीनों ने जासूसी साहित्य के तीन अलग-अलग विधाओं को जन्म दिया | तीनों तीन विद्यालय कहे जा सकते हैं इस विधा के | कम्बोज स्कूल ने सबसे अधिक लोगों को प्रभावित किया | विशेष बात यह रही कि ओम प्रकाश शर्मा की तरह उन्होंने भी कभी किसी को अपने नाम का इस्तेमाल करने से नहीं रोका | कुछ लोग इसे उनकी महानता कह सकते हैं और कुछ इसे अव्यवहारिक होना भी कह सकते हैं |

कम्बोज जी का पहला उपन्यास कंगूरा १९५८ में रंगमहल कार्यालय, खारी बावली, दिल्ली से प्रकाशित हुआ | उनका नवीनतम उपन्यास महफ़िल-ए-किस्सबाज़ी नीलम जासूस कार्यालय, दिल्ली से २०२१ से प्रकाशित हुआ है | बस कुछ दिन पहले | अगले उपन्यास की तैयारी में भी लगे हैं | इधर कुछ वर्षों में उनके कई सामाजिक, जासूसी और ऐतिहासिक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं | ये अलग बात है कि विजय अलफांसे या सिंगही को लेकर उन्होंने वर्षों से नहीं लिखा है | अन्य लोग लिखते रहे हैं | वेद प्रकाश शर्मा ने बहुत लिखा | और भी कुछ लोगों ने प्रयास किया | खुद मेरे अगले उपन्यास में उनके पात्र विजय, अलफांसे, पवन सभी हैं | पर कम्बोज जी को कोई एतराज नहीं | जब उनसे इसके लिए मैंने उनसे परमिशन लेना चाहा तो खुश ही हुए | उन्हें अच्छा लगा कि उनके चरित्र अमरता की राह पर हैं |
विजय उनका सबसे जीवंत चरित्र है | कम्बोज के प्रथम उपन्यास ‘कंगूरा’ से ही विजय का जन्म हुआ जो १९५८ में प्रकाशित हुआ था | इसके तीन साल पहले इब्ने सफी ने इमरान सीरिज का पहला उपन्यास ‘खौफनाक इमारत’ लिखा था जिसे हिंदी में राजेश के नाम से प्रस्तुत किया गया | विजय में हम इमरान/राजेश की झलक पाते हैं | विजय को इमरान/राजेश से और भी जीवंत बनाने में कम्बोज जी सफल रहे | विजय एक सम्पूर्ण करैक्टर है | इतना जीवंत है वह कि उसे और डेवलप करने की सम्भावना नहीं दिखाई देती | वेद प्रकाश शर्मा का विजय भी अंत तक लगभग वही विजय रहा जो कम्बोज का विजय है | झकझकी भी है | बस शर्मा जी के विजय में थोडा सा इमोशन भी है शर्मा जी के एक चरित्र विकास के लिए | वहां पर विजय विजय नहीं रह जाता | पर रघुनाथ वही रह जाता है शर्मा जी के उपन्यास में भी | वह तुला राशि या सुपर इडियट ही रह जाता है |

फिर नंबर आता है अलफांसे | इब्ने सफी का भी एक चरित्र है अलफांसो | ३-४ उपन्यासों में आया है | पर यहाँ पर अलफांसे है | वह पहली बार ‘चीते की आँख’ में आया है |मुझे लगता है कि यह एक रिसर्च पुस्तक हो सकती है बस यह जानने के लिए कि कोई करैक्टर कैसे खड़ा होता है | कम्बोज लेफ्टिनेंट जेम्स गारनर और एक भारतीय मालिन की लड़की के प्रेम कहानी से कहानी की शुरुआत करते हैं | फिर दोनों का अनमेल विवाह, उनके पुत्र का जन्म और उसके साथ बच्चे की माँ का निधन | यही बच्चा आगे चलकर अलफांसे की शक्ल में हमारे सामने आता है | प्रस्तुत पुस्तक में अलफांसे के पिता के बच्चे के प्रति मनोभावों को बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया गया है | इसके बाद एक मासूम बच्चे का एक खतरनाक लड़ाके में परिणत होते दिखाया गया है | हर चरित्र का खूबसूरत चित्रण | ‘अलफांसे’ सीरिज की दूसरी किताब है ‘अलफांसे’ जिसमें उसकी मुलाक़ात पहली बार विजय से होती है | फिर तो दोनों कई बार साथ दिखे | कम्बोज के अलफांसे और ओम प्रकाश शर्मा के जगत में हम कुछ समानताएं हम महसूस कर सकते हैं | वेद प्रकाश शर्मा ने भी अलफांसे का बहुत अच्छा इस्तेमाल किया |
खतरनाक अपराधी और वैज्ञानिक सिंगही को भी नहीं भुला जा सकता | यह भी इब्ने सफी के पात्र संगही/ सिंगही का ही रूपांतरण है | चीनी पिता और मंगोलियन माता के पुत्र के रूप में इब्ने सफी के उपन्यास नीली लकीर में आया | सिंगही कम्बोज जी के कई उपन्यासों में एक महत्वपूर्ण विलन के रूप में आता रहा | उसे वह अपने उपन्यासों के अनुरूप ढलने में सफल रहे | विजय के नकली चाचा के रूप में सिंगही कम्बोज जी के बाद वेद प्रकाश शर्मा के कई उपन्यासों में भी आता रहा | नीलम जासूस कार्यालय प्रकाशन के सौजन्य से इस सीरिज की तमाम किताबें अब उपलब्ध हो चुकी है | दुसरे महत्वपूर्ण विलन के रूप में गिल्बर्ट उनके उपन्यासों में आया | मुझे याद नहीं आता कि अन्य किसी लेखक ने गिल्बर्ट को अपनाया |

कम्बोज जी के तमाम चरित्रों से सजी किताब ‘प्रेतों के निर्माता’ बलवीर के धनुषटंकार बनने की कहानी है | धनुषटंकार से तो वे सभी परिचित होंगे ही जिन्होंने कम्बोज जी या शर्मा जी के उपन्यास पढ़े होंगे | यह करामाती बन्दर अपने कारनामों से सभी को चकित करने के साथ-साथ मनोरंजन भी करता जाता है | यह कम्बोज के बेहतरीन किताबों में से एक है |
कम्बोज जी अपने सहयोगी चरित्रों पर भी उतनी ही मेहनत करते नज़र आते हैं | विजय के पिता के रूप में ठाकुर निर्भय सिंह, विजय के सहयोगी अशरफ,विक्रम,नाहर और आशा एवं जासूस ट्रेनी गोकुल मदारी,कुंदन कबाड़ी और फन्ने खां तातारी भी भरपूर मनोरंजन करते हैं | फिर रघुनाथ की पत्नी रैना भी है जिसका जिक्र आता रहता है |
२००८ में चन्द्रमहल का खज़ाना प्रकाशित होने के बाद कम्बोज जी गंभीर साहित्य की ओर मुड़ गए | उल्लेखनीय है की यह उपन्यास २०१८ में हार्ड बाउंड में प्रकाशित हुआ था | संभवतः जासूसी विधा के वे पहले लेखक रहे होंगे जिनके इन्साफ का जनाजा, रेलगाड़ी का भूत और चन्द्रमहल का खजाना जैसे थ्रिलर और आर्थर कानन डायल के अनुवादित पुस्तक पिशाच कुत्ता और दहशत की घाटी हार्ड बाउंड में प्रकाशित हुए | यह जासूसी/पोपुलर साहित्य के लिए एक लैंडमार्क कहा जा सकता है |

ऐतिहासिक थीम पर भी कम्बोज जी ने कई उपन्यास लिखे और बाखूबी लिखे | सम्राट अशोक, सिकंदर महान, चाणक्य और चन्द्र गुप्त, कुन्तीपुत्र कर्ण आदि आदि | कवि तो वो है ही और अपने फेसबुक प्रोफाइल पर लिखते रहते हैं | अब तो यह सोचना पड़ेगा कि लेखन का कौन सा स्वरुप उनके लेखनी से अछूता रहा है | शेख फरीद पर भी उनकी पुस्तक आ चुकी है |
पर उनके पाठकों को अवश्य इंतज़ार होगा कि कब विजय और रघुनाथ की चुहलबाजी पढने को मिले | कब विजय अपने झकझकी से आशा को बोर करने की कोशिश करे | कब वह अलफांसे के साथ सिंगही के विश्वविजेता बनने के मिशन को ध्वस्त करने के लिए निकल जाए | कब गिल्बर्ट जैसा वैज्ञानिक विजय के हाथों मुर्ख बने |कब गोकुल मदारी,कुंदन कबाड़ी और फन्ने खां तातारी हमारे मनोरंजन के लिए निकल पड़े | कब अशरफ, आशा, विक्रम नाहर पवन की भर्राई आवाज पर अपने नए मिशन पर निकल जाएँ | और कब विजय अपने पिता ठाकुर साहब को बोर करे और पुनः ठाकुर साहब अपने नालायक अपनी छड़ी से उसकी पिटाई शुरू कर दे | सुना है गया वक़्त लौट कर नहीं आता | पर उम्मीद तो रहती है | जिस खूबसूरती से कम्बोज जी ने अपना नया उपन्यास महफ़िल-ए-किस्सबाज़ी लिखा है तो ऐसे किसी उपन्यास की मांग तो बनती है | बाकी तो लेखक के हाथ में है |
Kamboj sir believes in never complain and never explain.Whatever Pathak has written in his biography does not hurt him.
काम्बोज जी की लेखन यात्रा से परिचय कराता रोचक आलेख।
शानदार लेख, अत्यंत शानदार लेख.
बहुत सुंदर लेख। ऊर्जा का भंडार है कम्बोजजी आशा करता हूं उनकी आत्मकथा भी बहुत ज्ञानवर्धक होगी ।
बहुत बढ़िया