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हिंदी साहित्य के उन शिल्पियों को समर्पित जो हाशिये पर छोड़ दिए गए... 

प्रथम जनप्रिय साहित्य पुरस्कार २०२५ के लिए नियमों की घोषणा शीघ्र की जाएगी ***प्रथम पुरस्कार २१,००० रुपये*** द्वितीये पुरस्कार ११,०००रुपये*** तृतीय पुरस्कार

5,०००रुपये***और भी कई आकर्षक उपहार *** सभी पुरस्कार के साथ प्रमाणपत्र और ट्राफी दिए जायेंगे | विजेता का निर्णय 'रसरमनीआलय' की टीम और वोटिंग के आधार पर किया जाएगा |

स्वागतम

हिंदी लेखन के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले स्वरुप को समर्पित ‘जनप्रिय साहित्य’ में आप सभी का स्वागत है | इसमें एक तरफ हमारे रगों में जोश भरती जासूसी कहानियां, कभी मष्तिष्क में भय का संचार करती डरावनी कहानियां तो कभी हमरे दिल के तारों को झंकृत करती प्रेम कहानियां | आखिर यह भी तो हमारे समाज के ऐसे पहलू को प्रतिबिंबित करता है, जिससे कमोबेश हर घर और इलाका प्रभावित है |  इसमें षडयंत्र है, क़त्ल है कातिल है, समाज से छुपाकर किये जाने वाले गुनाह है तो साथ ही घर की चारदीवारी में छुपकर किये जाने वाले गुनाह भी शामिल हैं | और कभी प्रेम भी गुनाह  शक्ल में हमारे सामने आ जाता है | कभी हमारे किरदार अंतररास्ट्रीय गिरोहों का पर्दाफाश करते नज़र आते हैं तो कभी प्रेम की अमर भावना को हमारे समाज क़त्ल करते दिखाई देते हैं | एक तरफ है देशप्रेम की भावना जिससे ओतप्रोत इनके नायक अपने पाठकों को जोश से भर देते हैं और दूसरी तरफ है शुद्ध प्रेम की भावना जिसमे कई बार न जाने कितने परिवार जल जाते हैं | कई बार खलनायक भी मुख्य चरित्र के रूप में उभरकर सामने आते हैं और परिस्थितियों के गुलाम बनकर अपने पाठकों के दिल में घर कर जाते हैं | ऐसे साहित्य को कभी पल्प फिक्शन  के रूप में साहित्य के हाशिये पर स्वीकार किया गया |  पल्प साहित्य कहकर इसे बदनाम करने वाले ये भूल गए कि कभी देवकीनंदन खत्री ने अपने किताबों के जरिये लोगों को हिंदी सिखने के लिए प्रेरित किया | खत्री जी ने जिस परंपरा को शुरू किया था वह आज भी अटूट है, लेखन के अनगिनत बादशाहों के कलम की बदौलत | ऐसे ही हिंदी के उन तमाम लेखकों को समर्पित है यह वेबसाइट जिन्होंने सौ से अधिक वर्षों से इस मशाल को जलाए रखा है |

                                                             लेखक अपना सचित्र परिचय इस वेबसाइट पर प्रकाशित करने के लिए मेल करें : twainkst@gmail.com 

                                                                                                                            यह सेवा निःशुल्क है |

​जनप्रिय साहित्यकार  

हमलोग

जनप्रिय साहित्य ऐसे चंद हिंदी साहित्य प्रेमियों का जमावड़ा है जिन्होंने साहित्य को सम्पूर्णता से स्वीकार किया है | हमारे लिए साहित्य केवल प्रथम पंक्तियों के लेखकों के ही आधिपत्य में नहीं वरन उन सभी लेखकों की पूंजी है जिन्होंने इसे सर माथे लगाया है | अगर साहित्य गंभीरता है तो साथ ही हास्य भी है रुदन भी है, रहस्य भी है तो अपराध भी है,भय का संचार करती कथाएं भी हैं तो आपबीती के साथ साथ जगबीती भी है |

क्या आप जानते हैं

हिंदी में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने प्रथम बार उपन्यास शब्द का प्रयोग १८७५ में किया | पर इस पद का प्रयोग सबसे पहले नावेल के समानार्थी शब्द के रूप में १८६२ में भूदेव मुखोपाध्याय ने किया था जिसे बंकिम चन्द्र चटर्जी एक नयी ऊँचाई पर ले गए | इश्वरी प्रसाद और वामा राय द्वारा कृत वामा शिक्षक को दूसरा उपन्यास माना जा सकता है  जो १८७२ में प्रकाशित हुई | इसी श्रंखला में श्रधाराम फिल्लौरी कृत भाग्यवती १८७७ में आयी |

क्या आप जानते हैं

हिंदी का पहला उपन्यास १८७० में 'देवरानी जेठानी की कहानी' के नाम से प्रकाशित हुआ था | इसकी रचना पंडित गौरीदत्त ने की थी | इसकी रचना बालिका विद्यालयों में पाठ्यपुस्तक के रूप में की गयी थी | इस समय तक समस्त भारत में लड़कियों के लिए १७६० प्राथमिक विद्यालय और १३४ माध्यमिक विद्यालय खुल चुके थे | इसके पन्द्रह वर्ष पूर्व बंगला और मराठी में उपन्यास का जन्म हो चूका था !

क्या आप जानते हैं

नवम्बर १८७९ हिंदी प्रदीप से बालकृष्ण भट्ट ने रहस्य कथा नामक अपने धारावाहिक उपन्यास का प्रकाशन करवाया जो क्रमशः १८८२ तक प्रकाशित होती रही | यह कृति उपन्यास के रूप में एक जिल्द में कभी नहीं आ पायी | इस उपन्यास का प्रमुख पात्र 'तिलकधारी है | क्या यह प्रथम रचना थी रहस्य कथा के रूप में ?

क्या आप जानते हैं

पोपुलर साहित्य के कटु आलोचना का दौर बाबु देवकीनंदन खत्री के साथ ही शुरू हो चूका था | सरस्वती पत्रिका के एक अंक में उनके संपादक में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने खत्री जी पर हिंदी की हत्या का इलज़ाम लगाते हुए कहा था कि यह किसी मुनष्य की हत्या से भी बड़ा पाप है ! उन्होंने खत्री जी पर नयी पीढ़ी को पथभ्रष्ट करने का भी आरोप लगया था !

क्या आप जानते हैं

वेद प्रकाश कम्बोज पोपुलर साहित्य के सबसे ज्यादा पोपुलर लेखकों में से एक रहे हैं | उनका लेखन काल सबसे लम्बा रहा है | आपका प्रथम उपन्यास 'कंगूरा' १९५७-५८ के आस पास दिल्ली से प्रकाशित हुई | तब से वे कमोबेश वे लेखन के क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे और उनका नवीनतम उपन्यास करीब ६२-६३ साल बाद 'महफ़िल-ए-किस्साबाजी' २०२१ में 'नीलम जासूस कार्यालय से प्रकाशित हुआ | मजे की बात यह है दोनों किताबें एक ही जिल्द में प्रकाशित की गयी हैं !

क्या आप जानते हैं

देवकीनंदन खत्री(१८६१-१९१३)  और बालकृष्ण भट्ट(१८४४-१९१३) के बाद पोपुलर साहित्य में किशोरीलाल गोस्वामी (१८६५-१९३२) का नाम आता है  जिन्होंने हर विधा पर किताबें लिखी | पर खत्री जी के बाद अगर सबसे पोपुलर लेखक का नाम सामने आता है तो वह हैं गोपालराम गहमरी (१८६६-१९४६ ) जिन्हें आधुनिक जासूसी कथाओं का जन्मदाता कहा जा सकता है | उनके नाम दो सौ से ज्यादा उपन्यास हैं |

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